Saturday, May 8, 2021

'किसान आंदोलन’ की सहानुभूति में भी पंचायत चुनावो में ध्वस्त हुए भाकियू-रालोद के किले :

26 जनवरी की दिल्ली हिंसा के बाद भाकियू नेता राकेश टिकैत के आंसुओं पर खड़े हुए ’किसान आंदोलन’ में भाजपा विरोधियों को ’संजीवनी’ दिखाई दे रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में कथित किसान हितैषी  भारतीय किसान यूनियन के नेता अपने ही गढ़ में औंधे मुंह गिर गए।


मुजफ्फरनगर जनपद में भाकियू नेता व उनके परिजनों को जिला पंचायत चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी। किसान आंदोलन की सहानुभूति में भी वह अपनी चुनावी नैया पार नहीं लगा सकें।


केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे कथित किसान आंदोलन की पोल तो पहले ही खुल चुकी है। इस आंदोलन की बैसाखी पर सवार होकर भाजपा विरोधी दल तो पहले ही ताल ठोक रहे थे, वहीं आंदोलन की सूत्रधार भाकियू के सिपहसालारों ने अपनी राजनीतिक पारी का आगाज करने के लिए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों को मुफीद अवसर माना, लेकिन चुनावों में धराशायी हो गए। किसान आंदोलन की सहानुभूति का भी वह लाभ नहीं उठा सकें। खास बात रही कि इन भाकियू नेताओं को भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने ही चुनावी मैदान में पटखनी दी है।


भाकियू नेता भी कर चुके हैं असफल प्रयोग

एक समय भाकियू संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत ने रालोद मुखिया अजित सिंह के साथ मिलकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन करके राजनीतिक पारी खेलने की असफल कोशिश की थी। इसके बाद भाकियू नेता राकेश टिकैत ने पहले खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की हिमाकत की, लेकिन लोगों ने उनकी जमानत भी जब्त करा दी। इसके बाद 2014 में रालोद की बैसाखी के सहारे राकेश टिकैत ने अमरोहा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद से ही राकेश टिकैत सीधी चुनावी लड़ाई की बजाय बैकडोर के जरिए संसद या विधानमंडल में प्रवेश करने की जुगत लगा रहे हैं।


अब भाकियू के सिपहसालार हुए ढेर

किसान आंदोलन से गमाई सियासत और किसानों की नाराजगी का फायदा उठाने की नीयत से कई भाकियू नेता मुजफ्फरनगर से जिला पंचायत चुनाव लड़ने के लिए उतरें, लेकिन किसानों ने ही उन्हें आइना दिखा दिया। भाकियू जिलाध्यक्ष धीरज लाटियान ने जिला पंचायत के वार्ड 19 से अपनी पत्नी अजेता को चुनाव लड़ाया, लेकिन वह चौथे स्थान पर आकर बुरी तरह से चुनाव हार जिला पंचायत के वार्ड 29 से भाकियू के खतौली तहसील अध्यक्ष कपिल सोम ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह भाजपा समर्थित उम्मीदवार मनोज राजपूत से हार गए। भाकियू के मंडल उपाध्यक्ष नवीन राठी को जिला पंचायत के वार्ड दो से अपना चुनाव हार गए। भाकियू के मंडल महासचिव राजू अहलावत के परिजन सुनील अहलावत भैंसी गांव में ग्राम प्रधान का चुनाव भी हार गए।


दंगों के आरोपित की पुत्रवधू भी चुनाव हारी

2013 के मुजफ्फरनर दंगों के आरोपित गुलाम मोहम्मद जौला को भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत ने हाल ही में मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर काॅलेज मैदान में हुई महापंचायत में मंच पर स्थान दिया था। रालोद उपाध्यक्ष जयंत चैधरी ने मंच पर ही दंगों के आरोपित गुलाम मोहम्मद के पैर छुए थे। दंगों का यह आरोपित भी अपनी पुत्रवधू को जिला पंचायत के वार्ड 22 से चुनाव नहीं जिता सका। समाजवादी पार्टी का समर्थन होने के बाद भी हार का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि गुलाम मोहम्मद जौली कभी भाकियू संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के प्रमुख सहयोगी रहे। दंगों के बाद उसने भाकियू का साथ छोड़ दिया था और किसान महापंचायत में फिर से भाकियू में सक्रिय हो गए।


रालोद के जिलाध्यक्ष की पत्नी भी हारी

किसान आंदोलन की छाया में अपने सियासी समीकरणों को नई धार देने वाले रालोद के दिग्गज भी जिला पंचायत चुनाव में हार गए। मुजफ्फरनगर के रालोद जिलाध्यक्ष अजित राठी ने वार्ड 34 से अपनी पत्नी सविता राठी को चुनाव लड़ाया। इस वार्ड में भाजपा समर्थित उम्मीदवार वंदना वर्मा ने सविता राठी को चुनाव में हराया। अपने ही गढ़ में चुनाव हारने के बाद भाकियू व रालोद नेता सकते में हैं। भाजपा के विरोध में पूरे देश में किसानों को एकजुट करने का दावा करने वाले भाकियू नेता राकेश टिकैत के सूरमा अपने ही गढ़ में ढेर हो गए। जिला पंचायत के इन परिणामों के बाद से भाकियू नेता चुप्पी साधे हुए हैं।


किसानों की भीड़ को वोट में नहीं बदल पाए

किसानों की मांगों को लेकर भारतीय किसान यूनियन लंबे समय से आंदोलन चलाती आ रही है। भाकियू संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत ने करमू खेड़ी बिजलीघर से अपने किसान आंदोलन की शुरूआत की। इसके बाद मेरठ के कमिश्नरी पार्क में लाखों किसानों को जुटाया। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर लखनऊ में कई बार आंदोलन में किसानों को इकट्ठा किया। इसके बाद भी वह और उनके पुत्र किसानों की भीड़ को अपने वोट बैंक के रूप में स्थापित नहीं कर पाए। जब-जब भाकियू नेताओं ने किसानों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना चाहा तो उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। इससे साफ है कि किसानों को बरगला कर भीड़ तो इकट्ठा की जा सकती है, लेकिन उसका सियासी मतलब के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।


अब आंदोलन के लिए किसानों के पड़ रहे लाले

भाकियू के किसान आंदोलन से आम किसान पहले ही दूर थे, अब अन्य किसान भी आंदोलन से दूर हो गए हैं। गाजीपुर बाॅर्डर पर चल रहे आंदोलन में भाकियू नेताओं को किसानों को जुटाने में पसीने छूट रहे हैं। यहां पर लगाए गए टेंट खाली पड़े हुए हैं। भाकियू नेता राकेश टिकैत लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए तरह-तरह के बयान जारी कर रहे हैं। मुजफ्फरनगर के किसानों का भी साफ कहना है कि इस किसान आंदोलन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। केवल अपनी साख बचाने के लिए भाकियू नेता आंदोलन को खींच रहे हैं। देश का आम किसान इस सच्चाई को समझ चुका है। जिला पंचायत चुनावों के परिणाम इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

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