Wednesday, October 6, 2021

कभी मुसलमान, कभी 'दलित', कभी 'किसान' : कौन हैं ये नए नए बहानों से राष्ट्र को अशांत करने वाले

जिहादी, नक्सल और किसानवेशधारी आंदोलनकारियों में क्या समानता है ? तीनों रक्त पिपासू हैं. कट्टरपंथी हैं. व्यवस्था विध्वंसक हैं. लखीमपुर खीरी में जो रक्त-पात हुआ. चाहे किसी का भी हुआ, क्या वो होता, अगर सड़क पर किसानवेशधारी खालिस्तानी, जिहादी और नक्सलियों का गठजोड़ न होता.

जिहादी, नक्सल और किसानवेशधारी आंदोलनकारियों में क्या समानता है ? तीनों रक्त पिपासू हैं. कट्टरपंथी हैं. व्यवस्था विध्वंसक हैं. लखीमपुर खीरी में जो रक्त-पात हुआ. चाहे किसी का भी हुआ, क्या वो होता, अगर सड़क पर किसानवेशधारी खालिस्तानी, जिहादी और नक्सलियों का गठजोड़ न होता. जिहादी, नक्सल और विभिन्न वेश धरने वाले इन आंदोलनजीवियों ने कभी नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर आग लगाई, तो कभी एससी—एसटी एक्ट के नाम पर. ये भीमा कोरेगांव में भी होते हैं और हाथरस रेप कांड में भी. अब यह पूछने का समय आ गया है कि आखिर इनका इलाज क्या है. क्या देश का पूरा विपक्ष जिहादी, नक्सल, आंदोलनजीवियों, ईसाई मिशनरी और सबसे अंत में इनके पीछे छिपी पाकिस्तान और चीन जैसी विदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गया है.

लखीमपुर खीरी का जो घटनाक्रम सामने आ रहा है, वह एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा है. जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश चुनाव की ओर बढ़ रहा है, इस्लामाबाद, बीजिंग ही नहीं, इनके फंड पर जीने वाली देशव्यापी विध्वंसक शक्तियां बेचैन हो उठी हैं. असल में उत्तर प्रदेश पिछले साढ़े चार साल में कायाकल्प से गुजरा है. अब यह निवेश का सबसे पसंदीदा लक्ष्य हो गया है. प्रदेश की अर्थव्यवस्था देश के शीर्ष पर पहुंचने की ओर लपक रही है. एक्सप्रेस वे और हाईवे के जाल ने प्रदेश के सुदूर कोनों में विकास की लौ पहुंचा दी है. माफिया पर या तो पुलिस टूट पड़ी है या फिर बुलडोजर गरज रहा है. कुल मिलाकर साढ़े चार साल का सुशासन योगी आदित्यनाथ को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की पहली पसंद बना चुका है. देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाला उत्तर प्रदेश अगर इसी रफ्तार से आगे बढ़ा, तो विभाजनकारी ताकतों का अस्तित्व यहां समाप्त हो जाएगा. अंतिम सांसें ले रही कांग्रेस, पार्टी जिंदा रखने के लिए फड़ाफड़ा रही समाजवादी पार्टी, अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ती बहुजन समाज पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश का अमन और विकास जहर का काम कर रहा है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में आग लगाने के लिए प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, मायावती, असद्दुदीन औवेसी और इनके पीछे छिपे जिहादी, नक्सली और आंदोलनजीवी पेट्रोल का केन लिए घूम रहे हैं.


पहले जरा लखीमपुर खीरी के घटनाक्रम पर गौर कीजिए. सांसद अजय मिश्र टेनी के पिता की जयंती पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह खेल संबंधित कार्यक्रम था. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को इस कार्यक्रम में आना था. लेकिन बीच में कुछ तत्व घुस आए. ये कौन हैं. ये किसान हैं. जी नहीं. तराई का ये इलाका पंजाब आतंकवाद के समय भी सुलगा था. इस पूरे इलाके में बड़े जमीदारों के हाथ में सारी फसलें, मंडियां और कृषि उत्पादों के रेट हैं. पंजाब में अगर धुआं उठता है, तो तराई का ये इलाका बेवजह गर्माहट महसूस करने लगता है. नेपाल सीमा से सटे इस इलाके में न तो हथियारों की कमी है और न ही ड्रग्स की. दिल्ली बॉर्डर को जिस समय खालिस्तानियों ने घेरा, उस समय से लखीमपुर खीरी सुलग रहा है. भिंडरावाला के पोस्टर लेकर रैलियां यहां भी निकलीं. जाम यहां भी लगाए गए. लेकिन दिल्ली बार्डर की नौटंकी के चलते न तो इऩ्हें ज्यादा एक्सपोजर मिला और न ही ये लाल किले पर कब्जे जैसी किसी बड़ी हरकत को अंजाम दे पाए. पाकिस्तान, कनाडा में बैठे इस इलाके के कथित किसानों पर पिछले कुछ समय से भारी दबाव था. बस ये मौके की तलाश में थे. मौका इन्हें सांसद के कार्यक्रम के रूप में मिला.

हैलीपेड से कार्यक्रम स्थल का जो रूट था, उस पर मौजूद एक गुरुद्वारे के पास ये कथित किसान और इनकी मदद के लिए नेपाल से लेकर दिल्ली बॉर्डर तक से विध्वंसक तत्व पहुंचे हुए थे. वीडियो साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक घटना की शुरुआत उस समय हुई, जब यहां से गुजरती भाजपा कार्यकर्ताओं की एक जीप पर हमला किया गया. प्रदर्शनकारी इस जीप पर जा चढ़े और हमला बोल दिया. घबराहट में जीप बेकाबू हुई और कुछ लोग इसकी चपेट में आए. इसके बाद इन कथित भोले-भाले किसान प्रदर्शनकारियों ने ढूंढकर भाजपा से जुड़े लोगों की लिंचिंग की. लिंचिंग के इतने डरावने वीडियो मौजूद हैं कि तमाम सोशल साइट्स इन्हें बिना चेतावनी के आपको देखने की इजाजत नहीं देंगी. एक ड्राइवर को तो जबरन सांसद के बेटे का नाम लेने के लिए पीटा जा रहा था. जब इसने नाम नहीं लिया, तो इसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. एक पत्रकार चपेट में आया, क्योंकि उसने इस लिंचिंग और घटनाक्रम की शुरुआत के कुछ वीडियो बना लिए थे.

इस रक्तपात में कुल आठ लोगों की मौत हुई है. और मौत विध्वंसक और विभाजनकारियों के लिए उत्सव का अवसर होती है. कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी रात में ही लखीमपुर खीरी जाने के लिए बेताब हो उठीं. अखिलेश यादव को सुबह होने का इंतजार न हो सका. होड़ लग गई. औवेसी निकल पड़े. तेजस्वी यादव को नेपाल सीमा की तराई पर इस इलाके में जाने की न जाने क्या ललक पैदा हुई. इसे भारत की राजनीति का शव पर्यटन कह सकते हैं. ये विभाजक मंडली लाशों के इंतजार में बैठी रहती है. इन रक्त पिपासा सिलेक्टिव (स्वादानुसार) है. भाजपा शासित और इस समय तो उत्तर प्रदेश में ये किसी भी घटना को लपकने के लिए स्लिप (क्रिकेट में विकेटकीपर के बराबर वाली पोजिशन) के फील्डर की तैयार खड़े हैं.

2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने से इन्हें सदमा लगा. फिर उत्तर प्रदेश में 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ योगी आदित्यनाथ के हाथ में कमान आई, तो ये अवाक रह गए. 2019 में जब दोबारा केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और ज्यादा बहुमत के साथ सत्तासीन हुई, तो ये कोमा में चले गए. इनकी बेचैनी इसलिए ज्यादा है कि उत्तर प्रदेश में फिर योगी आदित्यनाथ सुशासन की नैया पर सवार होकर दूसरी पारी खेलने की तैयारी कर रहे हैं. एनआरसी और सीएए के नाम पर इन्होंने मुसलमानों को भड़काया कि उनकी नागरिकता जाने वाली है. शाहीन बाग और जामिया से शुरू होकर आखिरकार इन्होंने दिल्ली में आग लगा दी. उत्तर प्रदेश तब भी इनकी तमाम कोशिशों के बावजूद योगी की सख्ती के चलते न सुलग सका. अनुसूचित समुदाय को भड़काने की कोशिश की कि एससी—एसटी एक्ट खत्म किया जा रहा है. लेकिन केंद्र सरकार की प्रोएक्टिव पॉलिसी के कारण इसमें भी नाकाम रहे. फिर कृषि सुधारों के लिए बनाए गए तीन कानूनों के नाम पर इन्होंने किसानों को डराने की कोशिश की कि उनकी जमीन छीन ली जाएगी. इस खेल में खालिस्तानी, जिहादी, नक्सली ताकतों ने पूरा जोर लगाया. 26 जनवरी, 2021 को देश ने इन दंगाइयों का असली रूप देखा. दिल्ली को रौंदा, लाल किले की गरिमा को तार-तार किया गया. पंजाब के चंद आढ़तियों और राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव जैसे फुंके हुए कारतूसों के अलावा यह आंदोलन कहीं न पहुंच सका.

किसानों के बीच आंदोलन की आंच न पहुंच सकी. वजह मोदी पर भरोसा. किसान कैसे मान लें कि जो प्रधानमंत्री सीधे उनके खाते में सम्मान निधि पहुंचा रहा है, वह उनकी जमीन छीन लेगा. किसानों के नाम पर शोर मचाने वाले इस तथ्य को कैसे झुठला सकते हैं कि किसान सम्मान निधि का सालाना खर्च 75 हजार करोड़ रुपये है. साढ़े 11 करोड़ से ज्यादा किसानों के खाते में सीधे सालाना छह हजार रुपये पहुंचते हैं. दिल्ली बॉर्डर पर धरने के नाम पर मानसिक और भौतिक अय्याशी कर रहे इन कथित किसानों के लिए ये 6000 रुपये एक शाम का खर्च हो सकते हैं, लेकिन लघु और सीमांत किसानों के लिए यह बहुत बड़ी मदद है. फिलहाल उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने लखीमपुर खीरी में मारे जाने वालों को तमाम किस्म की मदद का ऐलान किया है. किसानों और सरकार के बीच समझौता हो गया है. लेकिन आग लगाने वाली ताकतें इस बुझती आग को हवा देने की कोशिश जारी रखेंगी.

किसानों पर मेहरबान मोदी


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक देश के किसानों के लिए 75,100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में कृषि ऋृण लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये करने की भी घोषणा की. गेहूं की खरीद पर 2013-14 में किसानों को 33,874 करोड़ रुपये दिये गये थे, जो बढ़कर 2019-20 में 62,802 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.

2020-21 में किसानों को 75 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया है. जिन किसानों को लाभ हुआ है, उनकी संख्या भी 2019-20 के 35.57 लाख से बढ़कर 2020-21 में 43.36 लाख पर पहुंच गयी.

धान की खरीद पर किसानों को 2013-14 में 63,928 करोड़ रुपये दिये गये थे. यह मोदीराज में बढ़कर 2019-20 में 1,41,930 करोड़ रुपये हो गया.

2020-21 में यह और बेहतर हुआ तथा इसके बढ़कर 1,72,752 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.

लाभ पाने वाले धान किसानों की संख्या 2019-20 के 1.2 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में 1.54 करोड़ पर पहुंच गयी.

दालों के मामले में किसानों को 2013-14 में 236 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था. यह बढ़कर 2019-20 में 8,285 करोड़ रुपये और 2020-21 में 10,530 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.

यह 2013-14 की तुलना में 40 गुना से अधिक की वृद्धि है. इसी तरह कपास के किसानों को भुगतान 2013-14 में 90 करोड़ रुपये रहा था, जो 2020-21 में 27 जनवरी तक बढ़कर 25,974 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।


लखीमपुर में लाठियों से पीट-पीटकर लोगों की निर्मम हत्या करने वाले किसान नहीं हो सकते: भारतीय किसान संघ

 उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में 3 अक्तूबर को हुई घटना पर भारतीय किसान संघ ने प्रतिक्रिया दी है। एक विज्ञप्ति जारी कर किसान संघ की ओर से कहा गया कि जो घटना घटी, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। घटना में लिप्त लोग किसान नहीं थे, विविध राजनैतिक दलों के थे। वामपंथी तरीकों से घटना को अंजाम दिया गया।


लाठियों से पीट-पीटकर लोगों की निर्मम हत्या की गई, जो कम से कम किसान तो नहीं कर सकते। कानून हाथ में लेना, सरेआम हत्याएं कराना, ऐसा लगता है जैसे प्रोफेशनल लोगों ने, जल्लादों ने यह कार्य किया हो।


इस घटना की जितनी निन्दा की जाए, कम है। इस प्रकार के कृत्यों में लिप्त लोगों को कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए। भारतीय किसान संघ ने मांग की है कि इस जघन्य घटना की निष्पक्ष जांच जल्दी से जल्दी करके मृतकों के परिजनों को न्याय मिलें। भारतीय किसान संघ ने मृतक परिजनों के साथ अपनी संवेदना प्रकट की है

पुरे विश्व को सुख देने वाला धर्म हमारे पास: श्री मोहनराव भागवत

गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने जम्मू विश्वविद्यालय के जनरल जोरावर सिंह सभागार में प्रबुद्धजनों की गोष्ठी को संबोधित किया।

समारोह में विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन को सुख देने वाला धर्म हमारे पास है। हमारा धर्म संपूर्ण विश्व के लिए, आत्मीय दृष्टि रखने और सुख देने वाला है। समाज वास्तव में केवल भीड़ नहीं, समूह नहीं, अपितु वह सब मनुष्य हैं जो सम व अज से तब बनते हैं, जब उनके सामने एक उद्देश्य होता है। उनका अपना जीवन एक उद्देश्य के लिए चलता है.

उन्होंने कहा कि विश्व की नजरें भारत पर लगी हैं. उसकी वजह है कि भारत में विविधता में एकता है. समाजवाद और वामपंथ के बाद कोई तीसरा रास्ता होना चाहिए, ऐसा विचार आज चल रहा है. इंग्लैंड का आधार भाषा है, अतः जब तक अंग्रेजी है यूके है. यूएसए का आधार आर्थिक विषय हैं. अरब जैसे देशों का आधार इस्लाम है. उन्होंने इस संदर्भ में भारत का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में पहले से ही विविधताएं हैं, लेकिन जोड़ने वाले तत्व हमारे पास होने के कारण हम एक हैं.

श्री भागवत ने कहा कि भारत में व्यक्ति समाज के विकास में बाधा नहीं बनते और न ही समाज व्यक्ति के विकास में बाधा बनता है. हमारे पूर्वजों ने हमें यह सिखाया है. यही हमारी संस्कृति है जो सनातन काल से चल रही है. भारत में अनेक राज्य, व्यवस्थाएं और विविधताएं हैं. लेकिन, इससे हमारी एकता नहीं बदलती. इसलिए यह आवश्यक है कि निःस्वार्थ भाव के साथ सभी यह समझें कि देश से बढ़कर कुछ नंहीं है. हमारा देश जब सुरक्षित, प्रतिष्ठित, समर्थ बनेगा तब हम सुरक्षित, प्रतिष्ठित, समर्थ बनेंगे.

उन्होंने कहा कि व्यवस्था बदलती है और इसके अंतर्गत ही अनुच्छेद 370 हटा, मतलब व्यवस्था में परिवर्तन हुआ. मन की आस पूरी हुई. इसके लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी और प्रजा परिषद ने आंदोलन किया था.

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, उत्तर क्षेत्र के संघचालक प्रो. सीता राम व्यास और जम्मू—कश्मीर प्रांत के सह संघचालक डॉ. गौतम मैंगी भी उपस्थित रहे।