Monday, May 18, 2020

कश्मीर में सेवा भारती की सेवा:

कश्मीर में सेवा भारती की सेवा:

सेवा भारती से जुड़ी करीब 300 से अधिक महिलाओं-लड़कियों का एक समूह बारामूला, सोपोर, बांदीपोरा, हंदवाड़ा, पुलवामा, कुपवाड़ा, लंगेट और श्रीनगर में जरूरतमंदों को जहां दवाइयों से लेकर राशन पहुंचा रहा है, वहीं खुद मास्क, सेनेटाजर बनाकर भी उनके द्वारा बांटे जा रहे हैं

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                       कश्मीर घाटी में राहत सामग्री बांटते सेवा भारती के कार्यकर्ता

देशव्यापी तालाबंदी के कारण कश्मीर घाटी भी प्रभावित है। देश के दूसरे हिस्सों की भांति कश्मीर में भी गरीब, असहाय एवं रोजमर्रा का काम करने वालों के सामने भोजन का संकट खड़ा है। ऐसी परिस्थिति में सेवा भारती के कार्यकर्ता जरूरतमंदों तक हर संभव मदद पहुंचाने में जुटे हुए हैं। बारामूला जिले की डंगीबाचा की रहने वाली सेवा भारती की अंचल प्रमुख मुबीना बेगम विपदा की घड़ी में 300 से अधिक महिलाओं-लड़कियों के एक समूह के साथ कश्मीर में राहत अभियान में जुटी हुई हैं। सेवा भारती से जुड़ी ये सभी महिलाएं बारामूला, सोपोर, बांदीपोरा, हंदवाड़ा, पुलवामा, टंगमर्ग, कुपवाड़ा, लंगेट और श्रीनगर में जरूरतमंदों को जहां दवाइयों से लेकर राशन, नमक, तेल एवं भोजन से संबंधित अन्य सामग्रियों को पहुंचाने में जुटी हैं, तो वहीं लड़कियों का एक समूह खुद मास्क बनाकर गांव-गांव जाकर बांट रहा है।

किसी को न हो कोई दिक्कत
मुबीना बेगम बताती हैं कि तालाबंदी की शुरुआत से ही हम अपनी साथियों के साथ राहत अभियान में जुट गए। शुरू-शुरू में तो पांच साथियों से इस अभियान की शुरुआत की लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ा वैसे-वैसे अन्य महिलाएं एवं लड़कियां इसमें जुड़ती चली गर्इं। ये सब गांव के लोगों को किसी भी तरह की कोई दिक्कत न होने पाए, इसके लिए अपने स्तर से जितना बन पड़ रहा है, वह सब कुछ करने का प्रयास कर रही हैं।

2010 में सेवा भारती से जुड़ीं मुबीना बताती हैं कि हमने तकनीक का सहारा लेते हुए अलग-अलग जगहों पर 5 से 10 लड़कियों का एक-एक समूह बना दिया। इसमें कोई राशन की व्यवस्था में लगा हुआ है, तो कोई मास्क बनाने में जुटा है, तो कोई मास्क पहुंचाने में। काम करते समय हमारे द्वारा हर जरूरतमंद को मास्क, साबुन आदि वितरित किया जा रहा है। इस दौरान कार्यकर्ताओं द्वारा करीब 500 से अधिक परिवारों में राशन उपलब्ध कराया जा चुका है, तो वहीं 1000 से अधिक मास्क खुद बनाकर लोगों में वितरित किए गए हैं।

वे बताती हैं कि सेवा भारती का लक्ष्य लोगों की सेवा करना है। मैंने इन सभी बातों को लोगों को बताना शुरू किया। धीरे-धीरे हमारा काम लोगों को पसंद आया। लोगों ने काम को समझना शुरू किया। आज उसी का परिणाम है कि हम आसानी से घाटी के दूर-दराज में लोगों की मदद कर पा रहे हैं और यहां के लोग भी हमारे काम की तारीफ कर रहे हैं। जिन इलाकों में हमारे कार्यकर्ता काम कर रहे हैं वे इलाके ऐसे हैं जहां मजदूरों और ग्रामीणों के पास मदद आसानी से नहीं पहुंच रही थी लेकिन सेवा भारती के कार्यकर्ता इन जगहों पर लोगों की मदद कर रहे हैं।

प्रकृति के विश्राम का समय:

प्रकृति के विश्राम का समय:

प्रकृति अपने लिए समय चाहती है। वह अपने घर को झाड़-पोंछकर साफ करना चाहती है, उसी तरह जैसे मनुष्य किसी पर्व पर अपन घर को साफ करता है। विश्वास रखें इस संकट के बाद प्रकृति एक मां की तरह हमें पुचकार लेगी, संभाल लेगी

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प्रकृति ने ठान लिया है कि अब उसके अपने बनाए हुए, सबसे बुद्धिमान माने जाने वाले इस मनुष्य नामक प्राणी को सबक सिखाना होगा। जैसा कि हम सभी अपने बच्चों में से सबसे अधिक बुद्धिमान बच्चे से आस लगाए रहते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारियां भलीभांति निभाएगा। घर में सुख, शांति बनाए रखने के लिए एक अनुशासन का पालन करेगा। पर जब यह आस पूरी करने में बच्चे अपना पूरा योगदान नहीं देते तो मां को उन्हें डांटने-डपटने का पूरा अधिकार होता है। तरह-तरह से समझाने या डांटने से भी जब बच्चे नहीं मानते तो मां अपने ही उन प्यारे बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए क्या दंडित नहीं करती? समझदार बच्चे से ही यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने से कमजोर सहोदरों की रक्षा करे। मां अपने घर को तहस-नहस होते नहीं देख सकती। अशिष्ट और उद्दंड बच्चों को फिर मिलती है सजा। फिर घबराए से वे बच्चे अपने कमरों में दुबक कर बैठ जाते हैं। मां फिर से बच्चों द्वारा फैलाए गए उस अस्त-व्यस्त घर को झाड़-पोंछकर सजाने में लग जाती है।

आज भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिल रहा है। मनुष्य ने प्रकृति का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्राकृतिक संसाधनों के विनाश की कीमत पर अपनी स्वार्थ-पूर्ति करने वाला प्राणी मनुष्य के अलावा और कोई नहीं है। अब प्रकृति ने अपने अस्त-व्यस्त घर को संवारना शुरू कर दिया है। न केवल संवारना, बल्कि एकदम नए सिरे से सजाना। जैसे पुराने मकानों को गिराकर उसका नवीनीकरण किया जाता है, बिल्कुल उसी तरह। कहीं जंगलों में आग लगी, तो कहीं अतिवृष्टि से सब कुछ धुल गया। मनुष्य न इन जंगलों की आग बुझाने में सफल हुआ, न ही अतिवृष्टि को रोक सका। प्रकृति जब रौद्र रूप धारण कर लेती है तब मनुष्य को यह अहसास होता है कि प्रकृति के सामने वह कितना नगण्य-सा है। जिस हवा में सांस लेता है उसे प्रदूषित करने में मनुष्य ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जल ही जीवन है, यह जानते हुए भी नदियों को प्रदूषित किया। प्रकृति के बनाए कीट-पतंगें भी पराग कणों को स्थानांतरित कर परागण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मनुष्य के अलावा प्रकृति में पाए जाने वाला हर जीव,पेड़-पौधे,नन्हें-नन्हें कीट-पतंग से लेकर बड़े-बड़े पशु-पक्षी, नदियों में बहने वाला जल तथा उसमें रहने वाले जलचर सभी पर्यावरण को शुद्ध करने में, उसका संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।

मनुष्य ने प्रकृति के बनाए नियमों को ताक पर रख कर स्वार्थवश प्रकृति के संतुलन को ही बिगाड़ दिया। फिर प्राकृतिक आपदाएं आने लगीं। इतने पर भी मनुष्य चेता नहीं। फलस्वरूप महामारियां फैलने लगीं। आज कोरोना नामक महामारी फैलने का मुख्य कारण विश्व जान चुका है, परंतु इसकी रोकथाम करने के लिए बेबस है। इसकी रोकथाम करने के लिए मनुष्य के हाथ में बस यही है कि वह कुछ न करे, चुपचाप डांट खाए हुए बच्चे की तरह रुंआसा हो अपने कमरे में पड़ा रहे, जिस तरह मां घर को ठीक से समेट कर, अपनी पसंद के अनुसार सजा लेने पर, अपने क्रोध के शांत हो जाने पर बच्चे को प्यार से बहला-फुसला कर मना लेती है और फिर उस पर अत्यधिक स्नेह की वर्षा करती है, उसी प्रकार प्रकृति का क्रोध भी शांत हो जाएगा। थोड़ा वक्त प्रकृति भी चाहती है। वह भी चाहती है अपने लिए विश्राम का समय। इस समय वह मनुष्य की कोई मदद या दखलंदाजी नहीं चाहती। प्रकृति अपना घर साफ-सुथरा बनाने में लगी हुई है। जिस तरह त्योहारों के वक्त मनुष्य अपने घर में लगे जाले आदि साफ कर, दीवारों पर रंग-रोगन कर घर को नया बना देता है, बिल्कुल उसी तरह प्रकृति भी अपने घर को नया रंग-रूप देने में जुटी हुई है। अगर मनुष्य थोड़ा धैर्य रखे तो न केवल इस महामारी से निजात पा सकता है, अपितु इसके पश्चात् प्रकृति का स्नेह भी पा सकता है। प्रकृति का वह खिला-खिला, शुद्ध जलवायु-युक्त, प्रदूषण-रहित वातावरण क्या किसी स्नेहाशीष से कम होगा?