Monday, May 18, 2020

प्रकृति के विश्राम का समय:

प्रकृति के विश्राम का समय:

प्रकृति अपने लिए समय चाहती है। वह अपने घर को झाड़-पोंछकर साफ करना चाहती है, उसी तरह जैसे मनुष्य किसी पर्व पर अपन घर को साफ करता है। विश्वास रखें इस संकट के बाद प्रकृति एक मां की तरह हमें पुचकार लेगी, संभाल लेगी

a_1  H x W: 0 x

प्रकृति ने ठान लिया है कि अब उसके अपने बनाए हुए, सबसे बुद्धिमान माने जाने वाले इस मनुष्य नामक प्राणी को सबक सिखाना होगा। जैसा कि हम सभी अपने बच्चों में से सबसे अधिक बुद्धिमान बच्चे से आस लगाए रहते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारियां भलीभांति निभाएगा। घर में सुख, शांति बनाए रखने के लिए एक अनुशासन का पालन करेगा। पर जब यह आस पूरी करने में बच्चे अपना पूरा योगदान नहीं देते तो मां को उन्हें डांटने-डपटने का पूरा अधिकार होता है। तरह-तरह से समझाने या डांटने से भी जब बच्चे नहीं मानते तो मां अपने ही उन प्यारे बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए क्या दंडित नहीं करती? समझदार बच्चे से ही यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने से कमजोर सहोदरों की रक्षा करे। मां अपने घर को तहस-नहस होते नहीं देख सकती। अशिष्ट और उद्दंड बच्चों को फिर मिलती है सजा। फिर घबराए से वे बच्चे अपने कमरों में दुबक कर बैठ जाते हैं। मां फिर से बच्चों द्वारा फैलाए गए उस अस्त-व्यस्त घर को झाड़-पोंछकर सजाने में लग जाती है।

आज भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिल रहा है। मनुष्य ने प्रकृति का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्राकृतिक संसाधनों के विनाश की कीमत पर अपनी स्वार्थ-पूर्ति करने वाला प्राणी मनुष्य के अलावा और कोई नहीं है। अब प्रकृति ने अपने अस्त-व्यस्त घर को संवारना शुरू कर दिया है। न केवल संवारना, बल्कि एकदम नए सिरे से सजाना। जैसे पुराने मकानों को गिराकर उसका नवीनीकरण किया जाता है, बिल्कुल उसी तरह। कहीं जंगलों में आग लगी, तो कहीं अतिवृष्टि से सब कुछ धुल गया। मनुष्य न इन जंगलों की आग बुझाने में सफल हुआ, न ही अतिवृष्टि को रोक सका। प्रकृति जब रौद्र रूप धारण कर लेती है तब मनुष्य को यह अहसास होता है कि प्रकृति के सामने वह कितना नगण्य-सा है। जिस हवा में सांस लेता है उसे प्रदूषित करने में मनुष्य ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जल ही जीवन है, यह जानते हुए भी नदियों को प्रदूषित किया। प्रकृति के बनाए कीट-पतंगें भी पराग कणों को स्थानांतरित कर परागण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मनुष्य के अलावा प्रकृति में पाए जाने वाला हर जीव,पेड़-पौधे,नन्हें-नन्हें कीट-पतंग से लेकर बड़े-बड़े पशु-पक्षी, नदियों में बहने वाला जल तथा उसमें रहने वाले जलचर सभी पर्यावरण को शुद्ध करने में, उसका संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।

मनुष्य ने प्रकृति के बनाए नियमों को ताक पर रख कर स्वार्थवश प्रकृति के संतुलन को ही बिगाड़ दिया। फिर प्राकृतिक आपदाएं आने लगीं। इतने पर भी मनुष्य चेता नहीं। फलस्वरूप महामारियां फैलने लगीं। आज कोरोना नामक महामारी फैलने का मुख्य कारण विश्व जान चुका है, परंतु इसकी रोकथाम करने के लिए बेबस है। इसकी रोकथाम करने के लिए मनुष्य के हाथ में बस यही है कि वह कुछ न करे, चुपचाप डांट खाए हुए बच्चे की तरह रुंआसा हो अपने कमरे में पड़ा रहे, जिस तरह मां घर को ठीक से समेट कर, अपनी पसंद के अनुसार सजा लेने पर, अपने क्रोध के शांत हो जाने पर बच्चे को प्यार से बहला-फुसला कर मना लेती है और फिर उस पर अत्यधिक स्नेह की वर्षा करती है, उसी प्रकार प्रकृति का क्रोध भी शांत हो जाएगा। थोड़ा वक्त प्रकृति भी चाहती है। वह भी चाहती है अपने लिए विश्राम का समय। इस समय वह मनुष्य की कोई मदद या दखलंदाजी नहीं चाहती। प्रकृति अपना घर साफ-सुथरा बनाने में लगी हुई है। जिस तरह त्योहारों के वक्त मनुष्य अपने घर में लगे जाले आदि साफ कर, दीवारों पर रंग-रोगन कर घर को नया बना देता है, बिल्कुल उसी तरह प्रकृति भी अपने घर को नया रंग-रूप देने में जुटी हुई है। अगर मनुष्य थोड़ा धैर्य रखे तो न केवल इस महामारी से निजात पा सकता है, अपितु इसके पश्चात् प्रकृति का स्नेह भी पा सकता है। प्रकृति का वह खिला-खिला, शुद्ध जलवायु-युक्त, प्रदूषण-रहित वातावरण क्या किसी स्नेहाशीष से कम होगा? 

No comments:

Post a Comment