Monday, September 14, 2020

सतर्क और शक्तिशाली भारत

 सतर्क और शक्तिशाली भारत

कोविड कुहासे के बीच भारत के इस स्वतंत्रता दिवस का सूर्योदय कुछ अलग है। महामारी को चित्त करने के लिए दुनिया सामाजिक दूरी का दाव आजमा रही है और इस बीच भारत ने वैश्विक संबंधों की दशकों पुरानी खाइयों को पाटने वाले लंबे डग भर डाले हैं

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इस राष्ट्र की चाल-ढाल में ऐसा आत्मविश्वास देखकर विश्व हैरान है, शत्रु परेशान हैं और मित्रता के लिए आगे आते देश आश्वस्ति भाव से भर उठे हैं।

यह स्वाभाविक ही है।

‘यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज’ जैसे विचार समूह मानते हैं कि लद्दाख में चीन की धौंसबाजी को भारत ने जिस दृढ़ता से ठंडा किया है उसकी कल्पना भी ड्रैगन को नहीं थी। भू-रणनीतिक विशेषज्ञों का आकलन था कि जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर भारत चौकड़ी बनाएगा और तब चीन की हनक ठीक होगी। परन्तु बड़े आघात की आहट भर से भारत जिस तरह, अपने बूते चीन के सामने तनकर खड़ा हुआ उसने बता दिया कि चीजें तेजी से बदल रही हैं।

व्यक्ति, परिवार या राष्ट्र, मूल चरित्र की परीक्षा परेशानी के समय ही होती है। जो भीतर से कमजोर होते हैं, बाधाओं में बिखर जाते हैं। इसके उलट जो आंतरिक तौर पर शक्ति सम्पन्न होते हैं वे आपदाओं को अवसर में बदलने वाला इतिहास लिखते हैं।

कोरोना संक्रमण से पहले ही अर्थ, राजनीति तथा विश्व व्यवहार समीकरणों के जानकार यह मानकर चल रहे थे कि अगली सदी एशिया की है। किंतु एकाएक उत्पन्न डगमगाहट के समय संतुलन, अनिर्णय के समय निर्णय और फूट के समय एकजुटता का परिचय देकर भारत ने महाद्वीप में अपने स्थान व सम्मान को रेखांकित कर दिया है।

प्रश्न है कि अचानक भारत ने यह शक्ति और सूझ पाई

कहां से?

इसका उत्तर छह वर्ष पूर्व आम चुनाव के उन परिणामों में छिपा है, जहां से नीतिगत बदलावों का दौर शुरू हुआ।

नहीं, यह बात केवल एक दल या राजनीति की नहीं है। यह उस समाज के मनोनुकूल परिवर्तन की है जो देश, इसकी व्यवस्था आदि को ढर्रे पर लाने के लिए दशकों से मचल रहा था।

समाज का मन था, भाजपा माध्यम बनी।

जनता ने उम्मीदों की उछाल के साथ राज पहले भी बदले थे, किंतु इस बार सबने देखा कि राज का मिजाज बदला। सत्ता परिवर्तन के साथ ही भारत वह लीक ठीक करने के लिए संकल्पित होता दिखा, जो औपनिवेशिक विचारों के प्रभाव में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही छोड़ बैठा था।

1947 में अंग्रेज गए थे, शासकों-नौकरशाहों की सोच का खांचा वही था। व्यवस्था और तंत्र वही था। दबाव, आघातों को झटकते हुए व आधारभूत संस्कार-सिद्धांतों पर दृढ़ रहते हुए यह देश आज ‘स्व’ की अलख जगाता दिखता है।

सदियों से उलझे से सांस्कृतिक सम्मान के प्रश्न सुलझ रहे हैं। घिसे, अड़चन पैदा करते कानूनों के ढेर हट रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को देश से काटने वाले बंधन

कटे हैं।

नई शिक्षा नीति ‘मानव’ को ‘संसाधन’ भर बनाने की बजाय समझदार, संस्कारित करने की राह बनाती दिखती है।

सीमाओं पर सतर्क और शक्तिशाली, राजनीतिक तौर पर स्पष्ट और निर्णयक्षम तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर आज के भारत का आधार ठोस है, यह न मानने का कोई कारण नहीं।

भौतिकी, अभियांत्रिकी का सिद्धांत है कि कोई त्रिभुज ही सबसे ठोस आधार हो सकता है, क्योंकि इसकी एक भुजा दूसरे को संभाले रहती है।

राष्ट्र को राजनीति से ऊपर रखने वाले विचार के साथ रीति-नीति में मूलभूत परिवर्तन के साथ भारत राज, समाज और अर्थ का, स्वदेशी, स्वावलंबन और विकेंद्रीकरण का ऐसा ही ठोस, अर्थपूर्ण त्रिकोण रचता दिखता है।

आत्मनिर्भरता के उद्घोष के साथ आपदा को अवसर में बदलने की जिद इस देश के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल रही है।

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