Sunday, December 7, 2025

स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में निष्काम भाव से योगदान दे रहे हैं- दत्तात्रेय होसबाले जी......

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में “प्रमुख जन गोष्ठी” का आयोजन कन्वेंशन हॉल, कैनाल रोड, जम्मू में किया गया।......


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में “प्रमुख जन गोष्ठी” का आयोजन कन्वेंशन हॉल, कैनाल रोड, जम्मू में किया गया। कार्यक्रम का मुख्य विषय था “संघ की 100 वर्ष की यात्रा और भविष्य की दिशा”, जिसमें संघ की अब तक की यात्रा, समाज में उसकी भूमिका और आने वाले समय की दिशा पर विस्तार से विचार रखा गया। कार्यक्रम में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ताशी रबस्तन जी मुख्य अतिथि रहे। मंच पर प्रांत संघचालक डॉ. गौतम मैंगी जी तथा विभाग संघचालक सुरिंदर मोहन जी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में स्वयंसेवक, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोग तथा समाज के विविध वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।


कार्यक्रम की शुरुआत आमंत्रित अतिथियों के स्वागत के साथ हुई। तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों ने भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। मंचासीन अतिथियों का औपचारिक परिचय एवं स्वागत किया गया। आयोजकों ने संक्षेप में बताया कि आरएसएस के शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रमुखजन गोष्ठी संघ की सामाजिक व राष्ट्रीय यात्रा को समझने और भविष्य की दिशा पर विमर्श करने के उद्देश्य से आयोजित की गई है।

अपने उद्बोधन ने ताशी रबस्तन जी ने समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रचनात्मक भूमिका पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने “संघ की 100 वर्ष की यात्रा और भविष्य की दिशा” पर विस्तृत विचार रखे। उन्होंने डॉ. के.बी. हेडगेवार जी द्वारा संघ की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए, संघ की क्रमिक विकास यात्रा का वर्णन किया। सरकार्यवाह जी ने कहा कि गत सौ वर्षों में संघ ने दैनिक शाखाओं, सेवा कार्यों, शैक्षणिक एवं सामाजिक पहल के माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचने का प्रयास किया है। संघ की मूल दृष्टि हमेशा से एक मजबूत, आत्मविश्वासी, सांस्कृतिक रूप से जागरूक और संगठित भारत के निर्माण की रही है। स्वयंसेवक प्रायः मौन और निष्काम भाव से समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देते रहे हैं। भविष्य की दिशा पर उन्होंने अधिक से अधिक युवा वर्ग को सकारात्मक सामाजिक कार्यों से जोड़ने, सामाजिक समरसता तथा सभी प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकसूत्र में पिरोने पर्यावरण संरक्षण, परिवार संस्था की मजबूती और समुदाय आधारित जीवन मूल्यों, तथा प्रत्येक नागरिक के राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि संघ का शताब्दी वर्ष कोई अंतिम पड़ाव नहीं, बल्कि एक लंबे सफर का महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसके बाद समाज और राष्ट्र के लिए और अधिक समर्पण के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। अंत में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के साथ प्रमुखजन गोष्ठी का समापन हुआ। यह प्रमुखजन गोष्ठी प्रेरणादायी वातावरण में संपन्न हुई, जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों ने संघ की सौ वर्षीय यात्रा को समझते हुए, समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति नवीन संकल्प व्यक्त किया

 


Wednesday, July 6, 2022

पावागढ़ में 500 वर्ष बाद फहरी धर्म ध्वजा

 गुजरात में पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित माता काली के मंदिर के शिखर पर 500 वर्षो के बाद धर्म ध्वजा लहराई गई

भारत के जान मानस का मानना है कि यह पुनीत कार्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण जैसा ही है,

गत 18 जून का दिन भारत और भारतीयता के लिए बहुत ही शुभ रहा। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दर्शन-पूजन कर पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर में 500 वर्ष बाद शिखर ध्वज फहराया। यह कोई साधारण घटना नहीं है। स्वामिनारायण मंदिर वडताल, गुजरात के महंतश्री स्वामी वल्लभदास जी महाराज का कहना है, ‘‘प्रधानमंत्री द्वारा पावागढ़ के मंदिर में धर्मध्वजा लहराना वैसा ही कार्य है, जैसा कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का शुभारंभ करना।’’

उल्लेखनीय है कि यह मंदिर चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक पार्क का हिस्सा है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर माना है। बताया जाता है कि इस मंदिर की भव्यता की कथा दूर-दूर तक फैली हुई थी। मंदिर के शिखर पर लहरा रही पताका दूर से ही दिखाई देती थी। इस कारण यह मंदिर मुसलमान शासकों की नजरों में था। यही कारण है कि 500 वर्ष पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने इस मंदिर के शिखर को तोड़ दिया। उसके कुछ दिन बाद मंदिर के अवशेषों पर एक दरगाह बना दी गई, जिसका नाम था-सदनशाह की दरगाह

इस दरगाह के कारण मंदिर का शिखर 500 वर्ष तक नहीं बन पाया। श्री कालिका माता जी मंदिर ट्रस्ट, पावागढ़ के अध्यक्ष सुरेंद्र काका ने बताया, ‘‘लगभग तीन वर्ष पहले मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना बनाई गई और चूंकि यह काम वहां से दरगाह को हटाए बिना नहीं हो सकता था, इसलिए दरगाह वालों से बात की गई। इसके बाद दरगाह वाले उच्च न्यायालय चले गए। इसके बावजूद दोनों पक्षों में बात होती रही और उसका सुखद समाधान निकल आया। दरगाह से जुड़े लोग उसे स्थानान्तरित करने के लिए तैयार हो गए। दरगाह के हटते ही मंदिर का शिखर बनाया गया और उसके क्षेत्रफल को भी बढ़ाया गया। अब मंदिर बहुत ही भव्य और दिव्य बन गया है।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘इस मंदिर के दर्शन के लिए हर वर्ष लगभग डेढ़ करोड़ श्रद्धालु आते हैं। श्रद्धालुओं की भावनाओं को देखते हुए मंदिर को भव्य रूप दिया गया है।

श्री कालिका माता जी मंदिर ट्रस्ट, पावागढ़ के सचिव अशोक पंड्या ने बताया, ‘‘मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए ट्रस्ट ने 12 करोड़ रु. खर्च किए हैं। इसके साथ ही मंदिर ट्रस्ट ने राज्य सरकार को 35 करोड़ रु. दिए, ताकि वह मंदिर के लिए सुविधाएं जुटा पाए।’’ बता दें कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 2,500 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। वर्षों से इन सीढ़ियों की मरम्मत नहीं हुई थी। मंदिर के रास्ते में श्रद्धालुओं के लिए कोई सुविधा नहीं थी। पीने का पानी था, शौचालय और ही अन्य सुविधाएं। अब सीढ़ियां भी ठीक हो गई हैं और जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। ये सारे कार्य राज्य सरकार ने किए हैं। इन सब कार्यों पर कुल 125 करोड़ रु. खर्च हुए हैं। इनमें से 78 करोड़ रु. गुजरात सरकार के हैं।

मां काली का यह मंदिर वडोदरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। वडोदरा निवासी औरश्रीराम सेतुसंगठन के संस्थापक दीप अग्रवाल कहते हैं, ‘‘पूरे गुजरात और महाराष्टÑ में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। इस क्षेत्र के लोग अपने परिजनों के विवाह का निमंत्रण पहले इसी मंदिर में देते हैं। सदियों पुरानी यह परम्परा अभी भी चल रही है।’’

चंपानेर का इतिहास
इस भव्य मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार चावड़ा वंश के राजा वनराज चावड़ा ने मां काली का आशीर्वाद पाने की इच्छा से यहां एक नगर की स्थापना की। इसका नामकरण उन्होंने अपने सेनापति चंपाराज के नाम परचंपानेररखा। यह क्षेत्र लंबे समय तक राजपूत राजाओं के संरक्षण में रहा और 15वीं शताब्दी में बेगड़ा ने इसे बर्बाद कर दिया। इतिहासकार मुहम्मद मंझू नेमिरआते सिकंदरीमें लिखा है, ‘‘गुजरात में महमूद बेगड़ा जैसा कोई बादशाह नहीं हुआ। उसने चंपानेर का किला और उसके आसपास के स्थानों पर विजय प्राप्त की और कुफ्र प्रथा का अंत कर वहां इस्लाम की प्रथाओं को चालू कराया।

सन् 1484 में चंपानेर पर पूरी तरह मुसलमानों का कब्जा हो गया। उन्होंने पहले मां काली के मंदिर के शिखर को ध्वस्त किया और कुछ ही समय बाद शिखर पर सदन शाह की दरगाह बनवा दी, ताकि हिंदू कभी ध्वजा फहरा सकें। अब 2022 में उस मंदिर की भव्यता वापस हुई है और उसके शिखर पर लहरा रही धर्म ध्वजा बता रही है कि भारत बदल रहा है।

बेगड़ा के लिए जिहाद सबसे अच्छा कार्य था। इसलिए चंपानेर पर उसकी बहुत पहले से बुरी नजर थी।मिरआते सिकंदरीके पृष्ठ संख्या 110 पर लिखा है, ‘‘रमजान में बेगड़ा ने अमदाबाद से चलकर चंपानेर पर चढ़ाई की। इसके बाद वह वहीं रुक गया और आसपास के स्थानों को नष्ट करने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। सेना अपना काम करके लौट आई, लेकिन वर्षा ऋतु के शुरू हो जाने से बेगड़ा अमदाबाद लौट गया। लौटने के बाद भी वह दिन-रात चंपानेर को समाप्त करने के बारे में ही सोचता रहा। फिर उसने कुछ वर्ष के अंदर अपने शागिर्द मलिक अहमद के जरिए चंपानेर में लूट-मार करना शुरू किया। इसकी जानकारी मिलते ही चंपानेर के तत्कालीन राजा रावल ने उसका मुकाबला किया और उसे बुरी तरह पराजित कर दिया।’’

इस हार से बेगड़ा इतना गुस्से में आया कि उसने एक बार फिर से चंपानेर पर चढ़ाई का प्रण ले लिया। उस समय राजा रावल ने अपनी सेना की मदद के लिए ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी से चंपानेर आने का आग्रह किया। खिलजी चंपानेर के लिए चल पड़ा, लेकिन बीच में ही वह दाहोद से वापस लौट गया। लौटने के कारण को मंझू ने इन शब्दों में लिखा है, ‘‘खिलजी ने बड़े-बड़े आलिमों और काजियों से राय ली कि उसे चंपानेर के राजा का साथ देना चाहिए या नहीं?’’ तब सभी ने एक स्वर से कहा, ‘‘मुसलमान बादशाह (खिलजी) को इस समय काफिरों यानी हिंदुओं की सहायता नहीं करनी चाहिए।’’
इसके बाद राजा रावल और महमूद बेगड़ा के बीच भीषण युद्ध हुआ। रावल को बंदी बना लिया गया और दरबार में उन्हें सुल्तान का अभिवादन करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें पांच महीने तक कैद में रखा गया और एक बार फिर से उन्हें सुल्तान के सामने हाजिर किया गया, पर राजा रावल अपनी बात पर डटे रहे। आखिर में उनके सिर को कटवा कर सूली पर लटका दिया गया।

इस तरह सन् 1484 में चंपानेर पर पूरी तरह मुसलमानों का कब्जा हो गया। उन्होंने पहले मां काली के मंदिर के शिखर को ध्वस्त किया और कुछ ही समय बाद शिखर पर सदन शाह की दरगाह बनवा दी, ताकि हिंदू कभी ध्वजा फहरा सकें। अब 2022 में उस मंदिर की भव्यता वापस हुई है और उसके शिखर पर लहरा रही धर्म ध्वजा बता रही है कि भारत बदल रहा है, दुष्ट अक्रान्ताओ के कारण खोई अपनी संस्कृति को वापस पा रहा है